कारगिल विजय दिवस: आज भी अपने लालों को याद कर परिजनों के आंखों में आ जाते हैं आंसू

Image result for kargilक्या आप नायक अहमद अली, नायक आजाद सिंह, सिपाही विजेंद्र सिंह को जानते हैं? शायद नहीं। ये तीनों भारत मां के वो सपूत है, जिन्होंने जंग-ए-कारगिल फतह करने के लिए अपनी जान दे दी। जब पूरे मुल्क में पाकिस्तान को हराकर कारगिल फतह की खुशी मनाई जा रही थी, तो इनके घरों में मातम का माहौल था। आंखों में आंसू थे, लेकिन दिल में तसल्ली थी। बेटा देश के लिए कुर्बान हो गया।
भारत मां के सपूत ने मिट्टी का हक अदा कर दिया। आज भी अपने सपूतों को याद कर उनके घर वाले गमगीन हो जाते हैं, लेकिन फक्र से कहते हैं कारगिल में शहीद हुआ है मेरा लाल। आज भी वहां होता तो आतंकियों से लोहा लेता। देश पर मरने को हर किसी को नसीब नहीं होता है। तिरंगे का हर कोई कफन नहीं पहनता है। 

चोटी-5685 पर विजेंद्र ने दे दी शहादत
पटौदी के गांव दौलताबाद के किसान परिवार में जन्में विजेंद्र मार्च 1998 में कुमायूं रेजिमेंट में भर्ती हुए। 13 कुमायूं बटालियन में तैनात विजेंद्र पहले ऑपरेशन मेघदूत और फिर ऑपरेशन विजय में भाग लिया। चोटी नंबर 5685 को पाकिस्तानी फौज से मुक्त कराने के लिए हमला बोला। इसी दौरान अचानक दुश्मन की गोली विजेंद्र के सीने में लगी और वीर सपूत भारत की गोद में समा गया। विजेंद्र की शहादत के बाद केंद्र सरकार ने एक पेट्रोल पंप और मुआवजा राशि दी।

विजेंद्र के बड़े भाई राजेंद्र का कहना है कि चाचा हतिराम से प्रेरणा लेकर सेना में गया था। देश सेवा का बड़ा सपना था। राजेंद्र भी अपने बच्चों को सेना में भेजना चाहता है। पिता जगमाल सिंह कहते हैं जब युद्ध चल रहा था, उस समय बहन लक्ष्मी की शादी थी। उस समय नहीं आ सका। अचानक एक दिन उसके वीरगति की सूचना मिली। मानों परिवार पर पहाड़ टूट गया। मगर फक्र है बेटे ने देश के लिए अपनी शहादत दे दी। 

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